जिनके आँचल में रहकर पलना सीखा,
जिनके कंधे पर बैठ कर देखा मेला,
जिसने तुम्हारे ख़ातिर सारा दुख झेला,
जिसने कभी अपने कर्तव्य से मुँह नही मोड़ा,
जिसने खुद भूखा रह कर तुम्हारा पेट भरा,
ऐसे माँ-बाप को खुशियाँ हम नहीं दे पाते हैं और उनका कर्ज कुछ ऐसे चुकाते हैं, उन्ही का हाथ पकड़ के वृद्धा आश्रम छोड़ आते है।
याद रखना एक बात एक पल ऐसा भी आएगा जब समय का चक्र फिर से वही घूम जाएगा, जहाँ पहुँचाया आज तुमने माँ-बाप को कल तेरा बेटा भी तुझे वही पहुँचाएगा।