Monday, May 10, 2021

राणा कुम्भा

आज हम बात करेंगे राजस्थान के सर्वश्रेष्ठ शासकों में से एक, मेवाड़ की शान राणा कुंभा की जिन्होंने मेवाड़ की शान में चार चांद लगा दिए...

राणा कुम्भा  महाराणा मोकल के पुत्र थे और उन्होनें अपने पिता की हत्या के बाद महज 16 साल की उम्र में ही मेवाड़ की गद्दी संभाली थी..... राणा कुम्भा को महाराणा कुम्भा या महाराणा कुम्भकर्ण के नाम से जाना जाता है...लेकिन इतिहास में  ये 'राणा कुंभा' के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं ....राणा कुम्भा की तीन संताने थी  जिनमें दो पुत्र और एक पुत्री थी  उनके पुत्रों का नाम उदय सिंह  प्रथम , राणा रायमल था और  पुत्री का नाम रमाबाई (वागीश्वरी ) था...
महाराणा कुम्भा का शासन 1433 से 1468 तक रहा...लेकिन  राणा कुम्भा ने गद्दी पर बैठते ही सबसे पहले अपने पिता के हत्यारों से बदला लेने का निश्चय किया था... उनके पिता राणा मोकल की हत्या चाचा, मेरा और महपा परमार ने की थी...
हत्या के बाद वो तीनों दुर्गम पहाड़ों में जा छिपे... इनको दण्डित करने के लिए रणमल राठौड़ को भेजा गया था...रणमल ने उन विद्रोहियों पर आक्रमण किया...रणमल ने चाचा और मेरा को तो मार दिया, लेकिन महपा चकमा देकर भाग गया था....  महपा ने भागकर  मालवा के सुलतान के यहाँ शरण ली थी... राणा कुम्भा ने अपने विद्रोहियों को सुपुर्द करने के लिए सुल्तान के पास सन्देश भेजा था....तो वहीं सुल्तान ने जवाब दिया था कि मैं अपने शरणागत को किसी भी तरह नहीं छोड़ सकता... अतः दोनों में युद्ध की सम्भावना हो गई........ 

सन् 1437 ई. में सारंगपुर के पास राणा कुम्भा ने मालवा सुल्तान महमूद खिलजी पर आक्रमण किया था....लेकिन सुल्तान हारकर भाग गया और जा कर माण्डू के किले में शरण ली....कुम्भा ने फिर माण्डू पर आक्रमण किया और सुल्तान को पराजित किया और उसे बन्दी बनाकर चित्तौड़ ले आए...और  कुछ समय कैद में रख कर क्षमा कर दिया... इस विजय के उपलक्ष में राणा कुम्भा ने चित्तौड़ दुर्ग में कीर्ति स्तम्भ बनवाया था.... महाराणा कुम्भा ने अपने पिता के हत्यारों से बदला लेने के लिए अपने पिता के मामा रणमल राठौड़ की मदद ली और जल्द ही उन्होने अपने पिता के हत्यारों से बदला लिया..

तो वही राठौड़ कहीं मेवाड़ को हस्तगत करने का प्रयत्न न करें, इस प्रबल संदेह से शंकित होकर उन्होंने रणमल को मरवा दिया और कुछ समय के लिए मंडोर का राज्य भी उन्ही के हाथ में आ गया..
उनके शत्रुओं ने अपनी पराजयों का बदला लेने का बार-बार प्रयत्न किया, लेकिन  उन्हें सफलता नहीं मिली..यहां तक की मालवा के सुलतान ने तो 5 बार मेवाड़ पर आक्रमण किया...
नागौर के स्वामी शम्स खाँ ने गुजरात की सहायता से स्वतंत्र होने का विफल प्रयत्न किया। यही दशा आबू के देवड़ों की भी हुई। मालवा और गुजरात के सुलतानों ने मिलकर महाराणा पर आक्रमण किया किंतु मुसलमानी सेनाएँ फिर परास्त हुई...

नागौर का युद्ध मेवाड़ के राजपूतों तथा नागौर की सल्तनत के बीच हुआ था....इसका आरम्भ मुजाहिद खान और शम्स खान नामक दो भाइयों के बीच विवाद से आरम्भ हुआ जिसमें शम्स खान पराजित हुआ। इसके बाद शम्स खान ने राणा कुम्भा की सहायता से नागौर को पुनः जीत लिया...लेकिन शम्स अपने युद्ध के पहले दिए वचन से मुकर गया जिससे एक और युद्ध हुआ जिसमें राणा कुम्भा ने शम्स खान को पराजित कर नागौर पर अधिकार कर लिया..

महाराणा ने गद्दी पर  बैठने के करीब  7  वर्षों के भीतर ही अन्य अनेक विजय भी प्राप्त किए..  उन्होनें  सारंगपुर, नागौर, नराणा, अजमेर, मंडोर, मोडालगढ़, बूंदी, खाटू, चाटूस आदि के सुदृढ़ किलों को जीत लिया और दिल्ली के सुलतान सैयद मुहम्मद शाह और गुजरात के सुलतान अहमदशाह को भी परास्त किया....इस प्रकार राजस्थान का अधिकांश और गुजरात, मालवा और दिल्ली के कुछ भाग जीतकर उसने मेवाड़ को महाराज्य बना दिया।

लेकिन राणा कुंभा की महत्तव जीत से अधिक उनके सांस्कृतिक कार्यों के कारण है। उन्होंने अनेक दुर्ग, मंदिर और तालाब बनवाए तथा चित्तौड़ को अनेक प्रकार से सुसंस्कृत किया। कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला उनकी कृति है। बंसतपुर को उन्होंने पुनः बसाया और श्री एकलिंग के मंदिर का जीर्णोंद्वार किया। चित्तौड़ का कीर्तिस्तम्भ तो संसार की अद्वितीय कृतियों में एक है। इसके एक-एक पत्थर पर उनके शिल्पानुराग, वैदुष्य और व्यक्तित्व की छाप है। अपनी पुत्री रमाबाई ( वागीश्वरी ) के विवाह स्थल के लिए चित्तौड़ दुर्ग में श्रृंगार चंवरी का निर्माण कराया तथा चित्तौड़ दुर्ग में ही विष्णु को समर्पित कुम्भश्याम जी मन्दिर का निर्माण कराया ..

मेवाड़ के राणा कुम्भा का स्थापत्य युग स्वर्णकाल के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि कुम्भा ने अपने शासनकाल में अनेक दुर्गों, मन्दिरों एंव विशाल राजप्रसादों का निर्माण कराया, कुम्भा ने अपनी विजयों के लिए भी अनेक ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण कराया था...वीर-विनोद के लेखक श्यामलदस के अनुसार कुम्भा ने कुल 32 दुर्गों का निर्माण कराया था जिसमें कुभलगढ़, अलचगढ़, मचान दुर्ग, भौसठ दुर्ग, बसन्तगढ़ आदि मुख्य माने जाते हैं 

राणा कुम्भा बड़े विद्यानुरागी थे। संगीत के अनेक ग्रंथों की उन्होंने रचना की और चंडीशतक एवं गीतगोविन्द आदि ग्रंथों की व्याख्या की। वे नाट्यशास्त्र के ज्ञाता और वीणावादन में भी कुशल थे। कीर्तिस्तंभों की रचना पर उन्होंने स्वयं एक ग्रंथ लिखा और मंडन आदि सूत्रधारों से शिल्पशास्त्र के ग्रंथ लिखवाए....जब राणा कुंभा भगवान शिव की प्रार्थना कर रहे थे तब उदय सिंह प्रथम ने उनकी हत्या कर दी और खुद को शासक घोषित कर दिया था.... इस महान राणा कुंभा की मृत्यु  1468 ई.  में अपने ही पुत्र उदयसिंह प्रथम  के हाथों ही हुई थी...

Saturday, May 1, 2021

2000 करोड़ की बनी भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री। BHOJPURI FILM INDUSTRY

1962 में अपनी  पहली फिल्म से  शुरुआत करने वाली भोजपुरी  फिल्म इंडस्ट्री करीब दो हजार करोड़ रुपए की फिल्म इंडस्ट्री के मुकाम तक पहुंच चुकी है और इस मुकाम तक पहुंचे के लिए भोजपुरी सिनेमा को बेहद जददोजहद भी करनी पड़ी है. 1962 की पहली भोजपुरी फिल्म 'गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो' ने जबरदस्त  सफलता का ऐसा  मुकाम हासिल किया कि एक के बाद एक भोजपुरी फिल्मे आने लगी...साथ ही सुपरहिट भी होनी लगी. भोजपुरी सिनेमा को करीब 58 साल का हो चुके है, और इन 58 साल में  सबसे सफल और बेहतरीन भोजपुरी फिल्में बनी जिसने कामयाबी के नए रिकार्ड बनाए.

मसलन दिलीप कुमार की 'गंगा-जमुना', जिसकी भाषा मिश्रित भोजपुरी रखी गई थी. सिंगर शैलेंद्र ने इस फिल्म में 'नैन लड़ जहिए तो मनवा मा कसक' रचकर भोजपुरी गीत गा कर इस गाने को कश्मीर से कन्याकुमारी तक पहुंचा दिया. 'गंगा-जमुना' के कई साल बाद सचिन साधना सिंह की फिल्म 'नदिया के पार' की रेकॉर्डतोड़ कामयाबी ने भोजपुरी सिनेमा में चार चांद लगा दिए. इस फिल्म के 'कौन दिसा में लेके चला रे बटोहिया', 'जोगीजी धीरे-धीरे', आज भी प्रसिद्ध हैं। 

किसी दौर में सुजीत कुमार, पद्मा खन्ना, राकेश पांडे, नजीर हुसैन जैसे  स्टार्स भोजपुरी फिल्मों की शान थे यहां तक की सुजीत कुमार को तो भोजपुरी का राजेश खन्ना भी माना जाता था.

उस दौर में ज्यादातर फिल्मकार लटके-झटकों वाली फिल्में बनाई जाती थे, ताकि इनकी कमाई अच्छी हो सके और इसी कमाई से स्टार्स  हिन्दी फिल्मे बना सके गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो' जैसी सलीकेदार फिल्म बनाने वाले कुंदन कुमार ने भी यही किया. भोजपुरी सिनेमा को रचनात्मक और कलात्मक ऊंचाई देने के बदले उन्होंने बाद में 'औलाद', 'अनोखी अदा', 'दुनिया का मेला', जैसी कई मसालेदार हिन्दी फिल्में बनाने पर ज्यादा ध्यान दिया

भोजपुरी फिल्में ज्यादात्तर बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में खूब चलती हैं. यही वजह है कि अब कई बड़े बॉलीवुड स्टार भी भोजपुरी फिल्में करने लगे हैं.

Wednesday, January 13, 2021

राजस्थानी मकर संक्रांति

मकर सक्रांति भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है.  राजस्थान में मकर सक्रांति को उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है. मकर सक्रांति के दिन पतंग उत्सव का आयोजन भी किया जाता है. मकर सक्रांति पूरे भारत में किसी ना किसी रूप में मनाई जाती है लेकिन सिर्फ भारत ही नहीं नेपाल में भी इस त्यौहार को मनाया जाता है दक्षिण भारत में मकर सक्रांति को पोंगल के नाम से जाना जाता है . 

पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है.  वर्तमान समय में यह त्योहार जनवरी महीने के चौदवे या पन्द्रवे दिन पड़ता है. इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है. 

यह भारतवर्ष और नेपाल के सभी प्रांतों में अलग-अलग नाम व रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है.

मकर सक्रांति राजस्थान के सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है. मकर सक्रांति पर सबसे पहले बाजरे को कूट कर उसका खीचड़ा बनाया जाता है. उसके बाद अंगारी पर बाजरे का खीचड़ा, तिली का तेल और तिल के लड्डुओं से भोग लगा कर संक्रांति पूजी जाती है. इसके अलावा घरों में दाल के पकौड़े ओर तिल की मिठाइयां बनाई जाती है। साथ ही कच्ची मूंग दाल, कच्चे चावल, घी, नमक व हल्दी मंदिर मे दी जाती है. मूंग दाल की खिचड़ी और घर घर जाकर गजक रेवड़ी व मूंगफली बांटी जाती है। साथ ही 14 चीजें सुहागन महिलाओं में बांटी जाती है.  राजस्थान में मकर सक्रांति का पर्व  सुहागन महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है. इस दिन सभी सुहागन महिलाएं पूरे  साज  श्रृंगार  के साथ अपनी सास को वायना देकर उनका आशीर्वाद लेती है. और इस दिन महिला द्वारा  किसी भी सौभाग्य सूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन व संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देने की भी प्रथा है.
इसके अलावा इस त्यौहार को बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. सुबह-सुबह कई लोग नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं और उगते सूर्य की पूजा करते हैं.  माना जाता है कि पवित्र नदी में डुबकी लगाने  के  बहुत महत्व है  और साथ ही कहा जाता है कि इस शुभ दिन पर हमें गरीबों और जरूरतमंद लोगों को चावल, मक्का और कपडो का दान भी करना चाहिए.
प्रत्येक 5 वर्षों में राजस्थान सरकार द्वारा पतंग महोत्सव का आयोजन भी किया जाता है. 

इस त्योहार पर पतंग उड़ाने की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं.  लोग मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाते हैं क्योंकि उन्हें सूर्य के संपर्क में आने का लाभ मिलता है.

इस दिन जयपुर के एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान गलताजी में पवित्र स्नान करके लोग सूर्य भगवान से अच्छे स्वास्थ्य, धन और अच्छे अवसरों की प्रार्थना करते हैं.

Sunday, December 13, 2020

Singer Neha Kakkar life Struggling story । Neha Kakkar Biography in Hindi

फैमिली बैकग्राउंड

मशहूर गायिका नेहा कक्कड़ का जन्म 6 जून 1988 को भारत के उत्तराखंड राज्य के ऋषिकेश में हुआ था ऋषिकेश में वो और उनका परिवार किराए के घर में रहते थे बाद में नेहा कक्कड़ का परिवार दिल्ली शिफ्ट हो गया। नेहा कक्कड़ के पिता का नाम जय कक्कड़ है और उनकी माता का नाम कमलेश कक्कड़। नेहा की भाई बहनों की बात करे तो उनका एक भाई और एक बहन है। बहन का नाम सोनू कक्कड़ है जो एक गायिका है और भाई का टोनी कक्कड़ जोकि एक गायक(singer), संगीतकार(musician), म्यूजिक डायरेक्टर और गीतकार(lyricist) हैं। नेहा अपने भाई बहनों में सबसे छोटी हैं। टोनी कक्कड़ ने अपनी एक म्यूजिक वीडियो में बताया था कि उनके पिता के हाथ जो काम आता था वो करते थे उनके पिता को संगीत भले ही ना आता हो लेकिन वो एक अच्छे लेखक थे। उनकी माता एक गृहणी महिला थी और तो और टोनी ने म्यूजिक वीडियो में एक ऐसी बात बताई जिसे जानकार आप हैरान हो जाओगे। कि नेहा कक्कड़ के माँँ-बाप उन्हें जन्म नहीं देना चाहते थे, क्योंकि उनके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। लेकिन 8 हफ्ते बीत जाने के कारण नेहा कक्कड़ की मां अबॉर्शन नहीं करा पाईं। 

नेहा की पढ़ाई :-

नेहा ने दिल्ली के न्यू होली पब्लिक स्कूल से अपनी शुरूआती पढाई लिखाई की। आपको जानकर हैरानी होगी कि नेहा ने अपनी पढ़ाई 11वीं कक्षा में ही छोड़ दी थी। वो इसलिए क्योंकि उस समय एक फेमस Singing reality शो Indian Idol के लिए वो सिलेक्ट हो गई थी। नेहा को स्टडी और अपने पैशन में से किसी एक को चुनना था। नेहा ने अपने Passion को चुना और पढ़ाई को 11th स्टैंडर्ड में ही अलविदा कह दिया था।

Struggle से success तक की कहानी :-

नेहा ने अपनी बड़ी बहन सोनू कक्कड़ को गाते हुए देख गाना शुरू किया था। चार साल की उम्र से ही नेहा ने भजन गाना शुरू कर दिया था। सोनू, टोनी और नेहा तीनो ही जागरण में गाना गाया करते थे।

नेहा ने एक रियलिटी शो में कहा था कि वो स्कूल नही जा पाती थी क्योंकि उस वक्त जागरण में गाने कि कोई समय सीमा नहीं हुआ करती थी, जिसके कारण सुबह तक गाना पड़ता था और उनकी परिवार की रोज़ी रोटी उसी से चलती थी नेहा ने कहा था कि वो ज्यादातर सिर्फ Exams देने ही स्कूल जाती थी।

सिंगिंग रियलिटी शो इंडियन आइडल में साल 2006 में नेहा कक्कड़ कंटेस्टेंट बन कर गई थीं और इंडियन आइडल की टॉप 10 कंटेस्टेंट की लिस्ट में शामिल भी रहीं पर कोई खिताब नहीं जीत पाई थीं, लेकिन इंडियन आइडल के मंच पर उनकी आवाज को एक अलग ही पहचान मिली। यहां वो भले ही विजेता नहीं थी लेकिन दर्शकों का दिल जीतने में कामयाब जरुर रहीं। नेहा अपना आइडल अपनी बहन सोनू कक्कड़ को मानती हैं क्योंकि नेहा ने बड़ी बहन सोनू को गाते देख ही गाना शुरू किया था।

साल 2008 मे नेहा ने अपनी एल्बम रिलीज की जिसका नाम था 'नेहा द राॅक स्टार'। इस एल्बम को मीत ब्रदर्स ने कम्पोज किया था। बॉलीवुड एक्टर शाहरुख खान नेहा कक्कड़ के फेवरेट हीरो हैं। शाहरुख के सम्मान में नेहा उनके लिए SRK ANTHEM भी गा चुकी हैं। शुरुआती दिनों में भले ही बॉलीवुड में काम नहीं मिला , लेकिन कॉन्सर्ट्स के जरिए नेहा ने अपनी पहचान बनाई। नेहा ' जय माता दी गर्ल ' के नाम से मशहूर हो गई।

2009 में ' ब्लू के लिए ए.आर रहमान के साथ काम किया।
इसके साथ ही उन्होंने ' ना आना इस देस लाडो ' के टाइटल ट्रैक के लिए भी आवाज दी। लेकिन उनकी पहली फिल्म जिसमें बतौर सिंगर उनका गाना रिलीज हुआ था वो थी फिल्म मीराबाई नॉट आउट. इस फिल्म का गाना हाय रामा उनका बॉलीवुड का पहला गाना था, जिसमें उनके को-सिंगर थे सुखविंदर सिंह। इस गाने को काफी पसंद भी किया गया था।

बॉलीवुड में कॉकटेल के लिए' सेकण्ड हैंड जवानी ' ,यारियां के लिए ' सनी सनी ' और क्वीन के लिए ' लंदन ठुमकदा ' सॉन्ग से पहचान हासिल की। इसके बाद उन्होंने आओ राजा और ' तू इश्क मेरा ' भी गाया। नेहा के गाने बैक टू बैक आते हैं और हिट भी होते हैं।

' दिलबर ' सॉन्ग बिलबोर्ड चार्ट में नंबर तीन पर आने वाला पहला भारतीय गाना बना। नेहा कक्कड़ ' इंडियन आइडल ' की जज भी हैं।

नेहा कक्कड़ YouTube पर भी काफी सक्रिय हैं और Youtube पर उनके 1.16 crore subscribers है। नेहा का एक सॉन्ग 'मिले हो तुम हमको' भारतीय म्यूजिक इंडस्ट्री केे सबसे हिट गानों में से एक माना जाता है। ये पहला ऐसा 1st Indian love song हैं जिस पर 1.2 Billion views  हैं।

नेहा को सोशल मीडिया पर 50 मिलियन से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं और इतने ज्यादा फैन्स किसी भी भारतीय सिंगर के नहीं हैं। नेहा फैन्स से रूबरू होने का मौका कभी नहीं छोड़ती हैं। वो लगातार उनके टच में रहती हैं। इसलिए सोशल मीडिया पर उन्हें सभी का भरपूर प्यार मिलता है।  

नेहा कक्कड़ इंस्टाग्राम पर सबसे ज्यादा फॉलो किया जाने वाला भारतीय गायिका हैं और साल 2019 में इंस्टाग्राम ट्रॉफी पाने वाली पहली भारतीय संगीतकार बनीं। नेहा से पहले इंस्टाग्राम अवॉर्ड अक्षय कुमार, विराट कोहली, दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा को दिया जा चुका है। आपको बता दे कि इंस्टाग्राम अवार्ड भारत में 1 साल में सिर्फ 5 लोगो को ही दिया जाता है।

हिंदी और पंजाबी गानों के लिए फेमस नेहा का स्टारडम आज एक सिंगर से ज्यादा है क्योंकि लोग उन्हें सिंगिंग के साथ-साथ परफॉर्म करते हुए भी देखना चाहते हैं और उनका हर गाना दर्शकों के दिलों पर राज करता है। 

नेहा कक्कड़ एक खुशमिजाज लेकिन इमोशनल इंसान हैं। किसी का दुख देखकर नेहा जल्द ही इमोशनल भी हो जाती हैं। नेहा को कई बार किसी शो को जज या होस्ट करते हुए रोते देखा गया है। नेहा ने बतौर सिंगर जो मुकाम हासिल किया है, वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है, कई तरह के संघर्ष देखें हैं।

Thursday, January 2, 2020

वृद्धा आश्रम (Old age home)

जिनकी उंगली पकड़कर चलना सीखा,
जिनके आँचल में रहकर पलना सीखा,
जिनके कंधे पर बैठ कर देखा मेला,
जिसने तुम्हारे ख़ातिर सारा दुख झेला,
जिसने कभी अपने कर्तव्य से मुँह नही मोड़ा,
जिसने खुद भूखा रह कर तुम्हारा पेट भरा,

ऐसे माँ-बाप को खुशियाँ हम नहीं दे पाते हैं और उनका कर्ज कुछ ऐसे चुकाते हैं, उन्ही का हाथ पकड़ के वृद्धा आश्रम छोड़ आते है।

याद रखना एक बात एक पल ऐसा भी आएगा जब समय का चक्र फिर से वही घूम जाएगा, जहाँ पहुँचाया आज तुमने माँ-बाप को कल तेरा बेटा भी तुझे वही पहुँचाएगा।

Sunday, December 1, 2019

हैवानियत का ज़माना

यह अपमान हमारा है।
लूटी है एक बेटी तो लूटा सम्मान हमारा है।

औरत समाज की किस्मत है।
फिर भी किस्मत की मारी है।
औरत आज भी जिंदा जलती है।
फिर भी कहलाती वो कुर्बानी है।

लूट कर एक बेटी की इज्जत हैवानो तुम्हें नींद कैसे आई होगी  तड़पा कर एक फूल जैसी बेटी तुमने अपने घर की माँ बहनों से नजरे कैसे मिलाई होगी।

इस हैवानियत के ज़मानें में कहाँ बेटियां महफूज़ है?
जहाँ बेटियो को देवी समझा जाता है। वही दूसरी तरफ बेटिया कुछ हैवानों की हवस का शिकार हो जाती हैं।

हैदराबाद में एक 26 साल की लड़की प्रियंका रेड्डी के साथ रेप किया गया और उसे बड़ी बेरहमी के साथ जिंदा जला दिया गया।

पहले निर्भया उसके बाद ट्विंकल फिर आसिफा और अब प्रियंका।

बीच सड़क पर अगर रेप हो सकता है तो फांसी क्यों नही?

जब तक देश में बल्तकारियों को बीच सड़क पे फांसी नही दी जाएगी। तब तक देश में ऐसे ही दरिन्दे बहन, बेटियो का रेप करते रहेंगे।

क्या लड़कियों को इंसाफ नही मिलेगा? 
क्या लड़कियां युही दुख दर्द झेलती रहेंगी? 

आखिर कब तक ऐसा ही चलता रहेगा?

कब सजा मिलेगी इन हत्यारों को?
कब सजा मिलेगी इन हत्यारों को?

Sunday, November 24, 2019

वृक्षारोपण

वृक्षारोपण से तात्पर्य वृक्षों के विकास के लिए पौधों को लगाना और हरियाली को फैलाना है वृक्षारोपण पर्यावरण के लिए अच्छा व महत्वपूर्ण है। वृक्षारोपण के महत्व पर समय समय पर जोर दिया गया है।  बढ़ते प्रदूषण की वजह से वृक्षारोपण की आवश्यकता इन दिनों अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गई है। हम सभी जानते है कि पेड़ ऑक्सीजन का स्रोत है। जिसके बिना पृथ्वी पर जीवित प्राणियों का जीवन संभव नहीं है।

पेड़ पौधे कार्बन डाइऑक्साइड लेते है और कार्बन डाइऑक्साइड लेने के अलावा सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड सहित कई हानिकारक गैसों को भी अवशोषित करते हैं और वातावरण से हानिकारक प्रदूषक को भी फिल्टर करते है जिससे कि हम साफ सुथरी व ताज़ा हवा सांस लेने के लिए मिल पाती है।

पेड़ बहुत सारे लाभ प्रदान करते है ये हवा को शुद्ध करते हैं, पानी को संरक्षित करते हैं, जलवायु नियंत्रण में मदद करते हैं, मिट्टी की शक्ति को बरकरार रखते हैं और कई अन्य तरीकों से पर्यावरण को लाभ पहुंचाते है और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं लेकिन हम इन्हें तीव्रता से काटते जा रहे है। इस नुकसान की क्षतिपूर्ति करने के लिए वृक्षारोपण आवश्यक है।

हमें अधिक से अधिक पेड़ पौधे लगाने चाहिए और हमें ऐसा करने के लिए आसपास के लोगों को भी प्रोत्साहित करना चाहिए। 
हमारे छोटे-छोटे प्रयास पृथ्वी पर पूरी तरह से पर्यावरण के लिए बहुत बड़ा अंतर ला सकते है।